Wednesday, March 27, 2013

मुट्ठी भर जिंदगी




    रोज़ तलाश शुरू होती है
    मुट्ठी भर जिंदगी की.......
    ढूंढती उसे हर शय में
    बालकनी की धूप में
    बच्चों की मुस्कान में
    किसी अपने की बातों में
    कुकर की सीटी में
    किसी टीवी सीरियल में
    मार्केट में दुकान पर
    टंगे किसी आकर्षक परिधान में
    चटपटे गोलगप्पों में
    पर थोड़ी-थोड़ी जोड़ कर भी
    उतनी नही है हो पाती
    कि एक दिन का
    जीना निकल पाए !
    जितनी जोड़ पाती हूँ
    उसमे में भी रिस-रिस कर
    बहुत अल्प रह जाती है
    और मैं रह जाती हूँ
    रोज़ ही घाटे में !!



   

  

6 comments:

  1. जिंदगी इसी का नाम है ... तलाश ओर फिर तलाश ... फिर भी पूरी नहीं होती तलाश ...

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    1. बिलकुल ठीक कहा दिगम्बर जी :)

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  2. इतनी अच्छी पोस्ट के बाद तो बस मौन हो जाता हूँ............. नि:शब्द..!!

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  3. हार्दिक धन्यवाद दीक्षित जी !!

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  4. क्या कहूँ ... बेहतरीन अभिव्यक्ति है ....बधाई

    पर थोड़ी-थोड़ी जोड़ कर भी
    उतनी नही है हो पाती
    कि एक दिन का
    जीना निकल पाए !
    जितनी जोड़ पाती हूँ
    उसमे में भी रिस-रिस कर
    बहुत अल्प रह जाती है

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद सुशील जी :)

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